मछलियों की आंखें
यह क्या है जो मन को किसी परछाई-सा हिलाता है
यह तो हवा नहीं चिरपरिचित सुबह वाली
चिड़ियाँ जिसमें आ सुना जाती थीं प्रकृति का हाल
धूप जाड़े वाली भी नहीं
ले आती थी जो मधुमक्खियों के गुंजार
यह कोई और हक़ीक़त है
कोई आशंका खुद को एतवार की तरह गढ़ती
कि कुछ होगा इस समय में ऐसा
जिससे बदल जाएगा हवा धूप वाला यह संसार
मधुमक्खियां जिससे निकल चली जोंगी बाहर
अपने अमृत छत्ते छोड़
हो सकता है हमें यह जगह ही छोड़नी पड़े
ख़ाली करनी पड़े अपनी देह
वासनाओं के व्यक्तिगत इतिहास से
जाना पड़े समुद्र तल में
खोजने मछलियों की वे आंखें
जो गुम हुर्इं हमीं में कहीं
ऐ शाम ऐ मृत्यु
नहीं मालूम वह कैसी शाम थी
आज तक जिसका असर है
पेड़ों-पत्तों पर
जिनसे होकर कोई सांवली हवा गुजरी थी
बहुत दिनों बाद
वह शाम अपनी ही वासना-सी दिख रही थी
मंद-मंद एक उत्तेजना को पास लाती हुई
वह मृत्यु थी मुझे लगा
मरने के अलावा उस शाम
और क्या-क्या हुआ
जीना कितना अधीर कर रहा था
मरने के लिए
एक स्त्री जो अभी-अभी गुजरी है
वह उसी शाम की तरह है
बिलकुल वैसी ही
जिसने मेरा क्या कुछ नहीं बिगाड़ दिया
फिर भी मैं कहती हूँ
तुम रहो वासना की तरह ही
ऐ शाम ऐ मृत्यु
मैं रहूंगी तुम्हें सहने के लिए.
दु:ख का साथ
मैंने मान लिया है
हमारे आस-पास हमेशा दु:ख रहा करेंगे
और कहते रहेंगे
‘खुशियाँ अभी आने वाली हैं
वे सहेलियां हैं
रास्ते में कहीं रुक गयी होंगी
गपशप में मशगूल हो गयी होंगीं’
वैसे मैंने कब असंख्य खुशियाँ चाहीं थीं
मेरे लिए तो यही एक ख़ुशी थी
कि हम शाम ठंडी हवा के मध्य
उन पूâलों को देखते
जो इस बात से प्रसन्न होते
कि उन्हें देखने के लिए
उत्सुक आँखे बची हुयी हैं इस पृथ्वी पर
मेरे लिए दु:ख का साथ
कभी उबाऊ न लगा
वे बहुत दीन हीन खुद लगे
उन्हें संवारने की अनेक कोशिशें मैंने कीं
मगर वे मेरा ही चेहरा बिगाड़ने में लगे रहे
मेरा चेहरा किसी पूâल-सा हो सकता था
खिली धूप में चमकता हुआ!
जाल
न प्रेम न नफ़रत एक बदरंग उदासी है
जो गिरती रहती है भुरभुराकर आजकल
एक दूसरे की सूरत किन्हीं और लोगों की लगती है
लाल-गुलाबी संसार का किस सहजता से विलोप हुआ
वह हमारी आँखे नहीं बता पोंगी
ह्रदय की रक्त कोशिकाओं को ही इसका कुछ पता होगा
उन स्त्रियों को भी नहीं
जिन्हें उसे लेकर कई भ्रम थे
जो अब तक मृत्यु के बारे में बहुत थोड़ा जानती हैं
वे दरअसल स्वयं मृत्यु हैं
जो उस तक शक्ल बदल बदलकर आर्इं
सचमुच मौत ने बनाया था उससे फरेब का ही रिश्ता
न प्रेम न नफ़रत
कायनात दरअसल एक बदरंग जाल है
जिसमें सबसे ठीक से फंसी दिखती है उदासी ही.
बीत गया समय
अचानक आँख खुली तो आसमान में लाली थी
अभी-अभी पौ फटी थी
एक ठंडी हवा देह से लग-लग कर जगा रही थी
मेरा बिस्तर एक नाव था अथाह जल में उतरा हुआ
मैं यहाँ कब और कैसे आई
यह कोई नदी है या समुद्र
सोच नहीं पा रही थी
लहरें दिखती थीं आती हुई
बीच में गायब हो जाती हुई
यह कोई साइबर-स्पेस था शायद
यहाँ सच और सच में फ़र्क इतना ही था
जितना पानी और पानी की याद में
कैसी दहला देने वाली यादें थीं पानी में डूबने की
हर दस दिन में दिखती थीं मैं किस कदर डूबती हुई
यह अद्वितीय परिस्थिति थी
जिसमें मैं अकेली नहीं थी
उसी की तरह मृत्यु मेरे भी साथ थी
कौन जान सकता है
हम दोनों ही सही वक्त का
इंतजार कर रहे थे
यह नाव को ही पता था उसे कब पलटना था
और किसे जाना था पहले
यह भी ठीक से नहीं पता चला
कब वह इस नाव पर आ गया था
बेछोर आसमान के नीचे
पानी के उपर बगल में
मैंने आँखें तब बंद कर ली थीं
आसमान की हलकी लाली अब तक बची थी
जो मेरे गालों पर उतरने लगी थी
मैं सजने लगी थी
मुझे भी कहीं जाने की तैयारी करनी थी
वह जान गया था
और अफ़सोस में जम-सा गया था
हमारे पास कहने को कुछ नहीं था
कभी-कभी कहने को कुछ नहीं होता
वह समय बीत चुका होता है
नहीं-सा
कल मुझे किसी ने सपने में प्यार किया
वह एक अलग दुनिया जान पड़ी
अपनी नसों में खून का एक प्रवाह महसूस हुआ
आश्चर्य कि इस सपने में प्यार करने वाला नहीं दिखा
यह कुछ मछली के तड़पने के अहसास-सा था
उसकी आँखें मुझमें थिर होती-सी
पानी कहीं नहीं था यक़ीनन
पानी की तरह हवा थी
जिसमें बहुत कम आक्सिजन था
और वह प्यार वायुमंडल के दबाव की तरह
दूसरों पर भी ज्यों पड़ रहा था
यहाँ कोई और न था
बस सबके होने का एहसास था
वैसे ही जैसे प्यार था सपने में
जरा देर बाद मगर
एक गाड़ी जाती हुई दिखी
जिसमें शायद मैं ही बैठी थी
कार के बोनट पर
हवा में पंख लहराता एक बाज बैठा दिखा
जो बाज नहीं था
वह एक मछली थी शायद
जिसके पंख थे हवा में तैरते
सपने में ही सोचती रही
एक दूसरे से मिलती हुई
अभी कितनी ही चीजें मिलेंगी
जो दरअसल वे नहीं होंगी
अच्छा हुआ सपने में मुझे जिसने प्यार किया
वह नहीं दिखा
आखिर वह नहीं होता जो दिखता
जिसे पहचानने की आदत पड़ी हुयी थी
वह खर-पात से बना कोई जीव होता शायद
दूसरी तरह की हवा में जीने वाला
प्रकृति का कोई नया आविष्कार
जिसे पहले न देखा गया हो
वह मनुष्य से वैसे ही मिलता-जुलता होता
जैसे नहीं-सा
नक्षत्र नाचते हैं
हमारी आपस की दूरियों में ही
प्रेम निवास करता है आजकल
सत्य ज्यूँ कविता में
ये आंसू क्यों तुम्हारे
यह कोई आखिरी बातचीत नहीं हमारी
हम मिलेंगें ही जब सब कुछ समाप्त हो चुका होगा
इस पृथ्वी पर सारा जीवन
मिलना एक उम्मीद है
जो बची रहती है चलाती
इस सौर्य मंडल को
हमारी इस दूरी के बीच ही तो
सारे नक्षत्र नाचते हैं
हमें इन्हें साथ-साथ देखना चाहिए
हम अभी जहाँ भी हैं
वहीं से.
न होने की कल्पना
इधर कितनी ही कवितायें पास आयीं
और चली गयीं
उनकी आँखों में जिज्ञासा रही होगी
क्या कुछ हो सकेगा उनका
इस उदास-सी हो गयी स्त्री पर
भरोसा करके
यह तो अब लिखना ही नहीं चाहती
कोई थकान इसे बेहाल किए रहती है
यह बताना नहीं चाहती किसी को
कि होने के पार कहीं है वह आजकल
जहाँ चीजें अलहदा हैं
उनमें आवाज नहीं होती
हवा वहां लगातार सितार-सी बजती रहती है
अपने न होने को पसंद करने वालों के लिए
ख़ुशनुमा वह जगह
जिसकी कल्पना ‘होने’ से संभव नहीं
कविता सोचती है शायद
यह स्त्री एक कल्पना हुई जाती है
पेड़ों पक्षियों की ज्यों अपनी कल्पना
मनुष्य जिसमें अंटते ही नहीं.
किसी और रंग में
यहां कहां से आती हुई आवाज है और किसकी
पीली पड़ी देह की रुग्णता हवा में ज्यों मिली हुई
आकर अपना पीलापन जो छोड़ जाती है
कितना कुछ महसूस करने में है
एक और देह की उन उदासियों को
वर्षों जो उससे लिपटी रहीं
जिन्हें कभी जाना था
किधर से यह आवाज आती है
अब बस करो कहीं ठहरो एक जगह
मत मिलाओ सारी खुशबुओं को एक में
जानना कितना मुश्किल हो जाएगा फिर
कौन सा स्पर्श किसका था
शब्दों पर से ऐतबार न उठे
इसलिए याद रखना जरुरी है उसका कहा हुआ
प्रेम में मरना सबसे अच्छी मृत्यु है
और यह भी कि संभोग भी आखिर एक मृत्यु है, छोटी ही सही
जिसके बाद मनुष्य का दूसरा जन्म होता है
कई ऐसी ही बातें लगभग सांसों पर चलती हुई
आत्मा से उतारी गई होंगी उसकी ही तरह
किधर से फिर यह कौन सी आवाज आती है
जिससे पहचानी जाएगी एक स्त्री
जिसका पीला रंग बदलने से मना करता है
किसी और रंग में.
हवा संग रहूंगी
आज रविवार है
आज किसी का इंतजार नहीं करूंगी
आज मैं क्षमा करूंगी
आज मैं हवा संग रहूंगी
उसके स्पर्श से सिहरी एक डाल की तरह
बस अपनी जगह रहूंगी
अलबत्ता थोड़ी देर बाद
पास ही तालाब में तैरती मछली को
देखने जाऊँगी
जानूंगी वे क्या पसंद करती हैं
तैरते रहना लगातार या सुस्ताना भी जरा
मैं उनकी आँखों में झांवूâंगी
बसी उनमें सुन्दरता के मारक सम्मोहन को
शामिल करूंगी जीवन के नए अनुभव में
आज पानी के पास रहूंगी
उसकी गंध को भीतर
उसके आस-पास के घास-पात के बहाने
भीतर के खर-पात देखूंगी
आज रविवार है
आज किसी का इंतजार नहीं करूंगी
इस धरती पर रहूंगी
उसके तापमान की तरह
संसार एक इच्छा है
अभी जिस हाल में हूँ
उसमें बची रह गयी तो भी बच जाऊँगी
मगर बच्चों की आवाजें
कानों में पड़ रही हैं
अभी उनकी इच्छों मुझसे बात कर रही हैं
उनकी ज़िद मुझमे प्राण भर रही हैं
वे जो चाहते हैं
उन्हें ले देने को वचनबद्ध हूँ
इसी हाल में ही तो यह संसार भी है
कामनाओं से उपजा
उसी में लिथड़ी
एक इच्छा
आज रात यदि सो सकी तो
दिन का प्रकाश दिखेगा ही
मैं भर जाऊँगी खुद से
मैं घर से बहार निकल
सूर्य को धन्यवाद कहूँगी
अभी जिस हाल में हूँ
इसी में बची रही
तो बच जाऊँगी
अपने बच्चों के लिए
इस जगत के लिए.